Sunday, October 18, 2015

12 TIPS TO BOOST CONFIDENCE


Confidence is a requisite for all success. On all occasions of life you need a lot of confidence. It can be boosted by a knack. This video shows 12 Tips to boost confidence. These tips have been long proved in the working life.




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Monday, October 12, 2015

MEDITATION: 5 TIPS TO BEGINNERS






Sometimes beginners feel difficulty while beginning the meditation. They are dissuaded by the technicalities, unanswered questions and other related problems. This video has addressed such problems and suggested the ways to solve them and proceed on the path of meditation smoothly and surely.

Saturday, September 12, 2015

YAMA THE REGULATOR REGULATES YOUR TRAINING IN YOGA


Yama is the regulator. यम का अर्थ है नियंत्रक। जैसे मृत्यु के देवता यम नवजीवन के लिए संभावना तैयार करते हैं योग में भी यम आपकी जड़ता और Inertia को तोड़कर आपके लिए नई संभावनाओं की भूमि तैयार करता है।
यम है व्यवस्था करना, अतिरेक से रोकना, अति से रोकना, not to allow excesses, not to allow doing excess, not to allow bearing excesses
अति करना आदमी का स्वभाव है। उसकी बनावट में ही अति, excess करना छिपा हुआ है। जब वह आस्तिक बनेगा तो ढेरों पूजा करेगा, सब तीर्थ करेगा, उपवास करेगा और जब नास्तिक बनेगा तो भगवान को खत्म करने के तर्क देगा, विज्ञान की दुहाई देगा और आखिर में गाली भी देगा। आप अतियों पर रहते हो। छोरों पर रहते हो। you have extremes of values in your life. Extreme of honesty, extreme of truth, extreme of love extreme of hatred. Everything is there in extreme.
Because balance is difficult. Balance needs an effort. A positive effort on your part. Yama is that effort that inculcates balance between you and your surroundings.
मृत्यु के देवता को यम इसीलिये कहते हैं कि वह जीवन के अतिरेक को रोकते हैं। जीवन इतना ललचाने वाला है कि यदि यम का हस्तक्षेप ना हो, यम मृत्यु का आयोजन ना करें तो कोई भी यहाँ इस धरती से जाना ना चाहेगा। सब यहीं जमा होते रहेंगे और जीवन में नएपन के आने का कोई रास्ता ना बचेगा। यम मृत्यु के द्वारा जीवन में नयापन लाते हैं। जो पुराना है और जो अपना जीवन जी चुका है उसे अब जाना होगा और जो नया है जो अधिक अनुकूल है उसे आना होगा। जीवन में नये मूल्यों को मृत्यु के देवता यम लाते हैं।
योग आपको इस जीवन से जोड़ने का आयोजन है तो यह पुरानेपन की राख पर खड़ा ना हो पाएगा। पुराने का झाड़ देना होगा। जीवन में नये तार बजना चाहते हैं। पुराने साज पर यह मुमकिन नहीं होगा। योग की टूल किट में यम और नियम इसी नए साज को बजाने के दो तरीके हैं।
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Sunday, November 9, 2014

ये गुरू लोग और खूँटों से बँधा मोक्ष

ये गुरू लोग और खूँटों से बँधा मोक्ष

कल दो सम्भ्रांत महिलाओं से मुलाकात हुई। वे महिलाएँ अपने गुरू जी के दिल्ली आगमन पर लोगों को आमंत्रित करने में लगी हुईं थी। चर्चा के दौरान उन्होंने अपने दो गुरूओं के विषय में बताया। जो बड़े वाले गुरू हैं उनके बारे में बताया गया कि वे अनादि और अनन्त हैं। उनका ना जन्म हुआ है ना ही कभी मरण होगा। और जो छोटे गुरू हैं उनको बड़े गुरू द्वारा अपने संदेश फैलाने के लिये एक सुपात्र के रूप में चुना गया है। जब उनसे पूछा गया कि क्या स्वयं उन्होंने बड़े वाले अनादि और अनन्त गुरू को देखा है या किसी ऐसे व्यक्ति से मिली हैं जिन्होंने उन गुरू को अपनी आँखों से देखा हो। उनका उत्तर नकारात्मक था। उन महिलाओं ने बताया कि उनको बहुत लोगों ने महसूस किया है। उन गुरू को केवल महसूस किया जा सकता है वह भी उन लोगों के द्वारा जो गुरू के सत्सँग में शुद्ध हो गये हों।

1935 के बाद से वियना सर्किल और लॉजिकल पॉज़िटीविस्ट्स दार्शनिकों ने कहा था कि दर्शन की अनेक समस्याओं की हमारी भाषा के अशुद्ध प्रयोग से पैदा होती हैं अतः भाषा में केवल वही बातें कही जानी चाहिएँ जिनके अर्थ सब लोगों की समझ में एक जैसे आएँ। इससे अनेक दार्शनिक भ्रान्तियाँ दूर होंगी। वास्तव में इन्हीं दार्शनिक भ्रान्तियों को हम लोगों दार्शनिक समस्याओं का नाम दे दिया है। जबकि ये मात्र भाषा की अशुद्धियाँ है।

ऐसे किसी गुरू के अस्तित्व को कैसे साबित किया जा सकता है जो जीवित है, सशरीर है परन्तु दिखाई नहीं देता है? उस गुरू को देखने के लिये उसी विशिष्ट सम्प्रदाय के लोगों से सत्सँग लेना पड़ेगा और कितना सत्सँग गुरू को देख पाने के लिये पर्याप्त होगा – यह बात भी उसी सम्प्रदाय के लोग तय करेंगे।

यह कैसी शर्त है? यह कैसा सत्य है? जो इतना बाधित है। जिस सत्य को सभी लोग देख भी नहीं सकते वह यूनिवर्सल (सार्वभौम) होने का दावा कैसे कर सकता है? इन टुकड़ों में बँटे हुए सत्यों को लेकर कोई साधक कैसे एक यूनिवर्सल सत्य तक पहुँच सकता है? हर पाँच कोस पर एक गुरू का ठीया स्थापित है। हरेक गुरू – शिष्य – मँडल के लोग अपने गुरू से बाहर किसी अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। कई बार तो ये शिष्य – गण बिल्कुल कूप मँडूपों की तरह बर्ताव करते हैं।

किसान के घर में कई खूँटे होते हैं। एक खूँटा बैल को चारा खिलाने वाले स्थान पर होता है। एक अन्य खूँटा चारा खा चुकने के बाद बैल के बैठने के लिये होता है ताकि वह आराम से जुगाली कर सके। अन्य खूँटे बैल को सरदी या गरमी से बचाने के लिये बरामदे के अन्दर या बाहर होते हैं।

सभी गुरू केवल अपने मत के द्वारा मुक्ति का संदेश देते हैं। अपने से बाहर अन्य सभी विचारों को ये गुरू लोग खारिज करते हैं। किसी भी बाहरी विचार को ये लोग गंदा याअपवित्र तक कह देते हैं। ये लोगों को अपने से बाँधते हैं और दूसरों से वर्जित करते हैं। ये गुरू धार्मिक खूँटों की तरह व्यवहार करते हैं। ये कहते हैं कि इनके साथ बँधकर ही आप मुक्त हो सकते हैं, मोक्ष पा सकते हैं।

विडम्बना यह है कि बहुत बड़ी संख्या में लोग स्वेच्छापूर्वक इन खूँटों के साथ बँध गये हैं और खूँटों से बँधा हुआ मोक्ष पाने के लिये लालायित हैं।

शिव कहते हैं:
न मे बन्धो न मोक्षो मे भीतस्यैता विभीषिकाः ।
प्रतिबिम्बमिदं बुद्धेर्जलेष्विच विवस्ततः ।। (वि.भै. का. 135)

न तो बन्धन कुछ होता है और न ही मोक्ष कुछ होता है। ये तो डरे हुए लोगों को और डराने वाले साधन हैं। यह संसार बुद्धि का वैसे ही प्रतिबिम्ब है जैसे जल में सूर्य का होता है।

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Thursday, October 23, 2014

रोग, भोग और योग के आढ़तिये


रोग, भोग और योग के आढ़तिये


  • चारों तरफ़ गुरुओं की धूम मची है। हर विपणक के यहाँ योग से सम्बन्धित सामग्री बिक रही है। चारों ओर आढ़त का बाजार लगा है। लोग योग बेच रहे हैं  कुछ अन्य लोग योग खरीद रहे हैं। कोई आसन बेच रहा है, कोई अच्छे वाले आसन ईजाद कर रहा है। कोई ध्यान के सस्ते दाम लगा रहा है। किसी दुकान पर कुण्डलिनी उठवाई जा रही है।
  • कुछ लोग प्राणायाम बेच रहे हैं। बता रहे हैं कि माल अच्छा है, साथ में गारन्टी दे रहे हैं कि मोटापा कम कर देगा। इस ध्यान- योग के बाजार में कुछ दुकानों पर एक्सेसरीज़ भी बिक रही है।
  • ज्यादा भीड़ उन दुकानों पर है जहाँ एक्सेसरीज़ या तो हर्बल है या फिर उन्हें आयुर्वेद में से कहीं से आया बताया जा रहा है। पूरे बाजार  में चहल पहल है। चतुर सुजान, उत्तम वस्त्र पहनकर दुकानों के काउन्टर पर विराजे हुए हैं। मुद्राओं को रेशमी थैलियों में बन्द करके नीचे सरका रहे हैं।
  • जब योगसूत्र रचा गया था । पातंजलि के सामने कैलोरी बर्न की समस्या नहीं थी जबकि आज की मुख्य समस्या ही कैलोरी बर्न की है। पातंजलि के साधक के सामने कुण्ठा और आत्मरोध की वह घातक स्थिति नहीं थी जो आज के मनुष्य के सामने बॉस की डांट, बच्चों के एडमिशन, पुलिस की हेकड़ी, काम के दबाव, गलाकाट कम्पीटीशन आदि ने पैदा कर दी है। आज एल्कोहलिकों की तर्ज़ पर वर्कोहलिक पैदा हो रहे हैं। ये सब पातंजलि और योगसूत्र के लिए अज्ञात थीं अतः योगसूत्र के भीतर इनका निदान भी संभव नहीं है।


रोग, भोग और योग के आढ़तिये

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